अनचाही याद ।


अक्सर  उन  बातों  को  जिसे  भुलाना चाहता हूँ ,
बार – बार क्यूँ याद आ जाती है । 
अक्सर उस चेहरे को जिसे दिल से हटाना चाहता हूँ ,
बार – बार क्यूँ सामने आ जाती है । 
वीरान सा हूँ ,

शमशान में रहने लगा हूँ । 

धोके की इस दुनिया में  ,
अपनापन खोने लगा हूँ ।  

 यादों के साए में ,
खुशियों का है नज़ारा । 
हकीकत की परछाई में ,
अश्कों का है ज़मावरा । 
धुँध में फैली है एक ऐसी चिंगारी ,
जो  कभी जल नहीं पाती है । 
     पता नहीं बार – बार मुझे उसकी याद क्यूँ आती है ?


     

          – आशीष कुमार 

30 thoughts on “अनचाही याद ।

  1. यादों के साए में ,
    खुशियों का है नज़ारा ।
    हकीकत की परछाई में ,
    अश्कों का है ज़मावरा ।
    धुँध में फैली है एक ऐसी चिंगारी ,
    जो कभी जल नहीं पाती है ।
    पता नहीं बार – बार मुझे उसकी याद क्यूँ आती है ?
    kya baat hai ! bahut khoob

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  2. i welcome you to my blog sir…
    felt privileged that you liked my poem…

    bahut bahut shukriya jo apne meri is kavita ko saraha… aise hi apni pratikriya se hame sushobhit karte rahiye…

    regards,
    Ashish Kumar

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