बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।
बस यही बात है, जो मुसीबत की जड़ है।
इसी बात में, गौण हो रहे जज़्बात।
मालूम नहीं कैसे, बिगड़ जाते हालात।
बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।
हमारी सब सुने, पर हम किसी की नहीं।
अहंकार में लिप्त हुई, इंसान की सोच।
अपनापन हमदर्दी छोड़, हो रहे सब मदहोश।
बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।
कहते हैं जिसे इंसान, पर वो इंसान नहीं।
मानव निर्मित हथियार और मिसाइल ने,
सिर्फ मानव को ही मारा।
कितने घर किए बर्बाद, और कितनों को उजाड़ा।
इस कदर बार बार, मानवता को ही मारा।
हमने मिसाइल तो बनाया, पर “मिसाल” कब बनेंगे?
इस अंधे दौड़ से, बाहर कब निकलेंगे?
बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।
मैं ही सिर्फ सत्य हूं, और बाकी कुछ नहीं।
असल सत्य जो है वो “मैं” नहीं,
और “मैं” जो है वो सत्य नहीं।
यही बात है जो समझनी है।
बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।
बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।
–Ashish Kumar
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