आदत |


अकेले रहने की आदत हो गयी है |
 
तन्हाई में जीने की आदत हो गयी है |
 
सबको मदद करने की आदत हो गयी है |
 
नज़रंदाज़ी का शिकार होने की आदत हो गयी है |
 
अँधेरे में रौशनी तलाशने की आदत हो गयी है |
 
बार बार ग़म को भुलाने की आदत हो गयी है |
 
कांटो भरी रास्तों पर चलने की आदत हो गयी है |
 
घाव पर नमक लगवाने की आदत हो गयी है |
 
बनावटी मुस्कराहट देने की आदत हो गयी है |
 
बिना खुश रहने की आदत हो गयी है |
 
किसी से कोई उम्मीद न करने की आदत हो गयी है |
 
 
ये आदत कब जाएगी पता नहीं…
 
इक ” चाहत ” थी इस ” आदत ” से छुटकारा पाने की |
 
पर …
 
लगता है ये ” आदत ” अब मेरी इक बहुत बरी ” ताकत ” बन गयी हैं |
 
    – आशीष कुमार 

प्यार का दर्द |


करते थे जिसके लिए हम रूप श्रृंगार |
कर के चली गयी मेरे दिल पे वार |
उसकी याद में मैं तारे गिनता चला गया |
रो रो कर आंसूं पीते चला गया |
मैं अपने प्यार का इजहार कर न सका |
अपने दिल की बात जुबान पर ला न सका |
किस्मत को शायद यही  मंज़ूर था |
मुझे नहीं मालूम मेरा क्या कसूर था |
            – आशीष कुमार

इक दिया जला पानी में |


मुसलाधार बारिश के मौसम में |

चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी के आवागमन में |

डूबते हुए सारे सपनों के भंवर में |

इक दिया जला पानी में |

बादलों की गर्गाराहट में |

तेलों के अभाव में |

मुश्किलों के भवसागर में |

इक दिया जला पानी में |

खाबों की डूबती हुई नैय्या में |

रिश्तों के टूटते ज़ख्म में |

चोटिल हुए शरीर के अंग में |

फिर भी …

इक दिया जला पानी में |

सूरज की किरणों को देखकर |

आँखों में उम्मीद की लहरें फिर जाग उठी |

मन में अचानक इक ख्याल आया ,

क्यूँ न फिर से ” इक दिया जलाएं पानी में ” |

राह कठिन हैं बहुत |

मुश्किलें तो आएंगी |

सहना भी परता है बहुत |

सफलता तभी तो मिलेगी |

अंधेरों को चीरकर |

समंदर में दौड़कर |

रेगिस्तान में वर्षा लाकर |

आओ अब …

” इक दिया जलाएं पानी में “…

– आशीष कुमार