यहाँ सब कुछ बिकता है ।
तन , मन , ईमान और धरम ।
आता नहीं है दूसरों पे रहम ।
यहाँ सब कुछ बिकता है ।
अपनापन , अकेलापन , मानवता और इंसानियत ।
बची है तो सिर्फ हैवानियत ।
यहाँ सब कुछ बिकता है ।
दिल, दिलवाले, प्यार और मोहब्बत ।
रह गयी है सिर्फ दिखावट ।
यहाँ सब कुछ बिकता है ।
हंसी , ख़ुशी , दुःख और दर्द ।
नहीं है कोई किसी का हमदर्द ।
चारों तरफ है झूठ और शोर का बोलबाला ।
जिसमे दब के रह जाती है सच्चाई की पाठशाला ।