बार – बार क्यूँ याद आ जाती है ।
अक्सर उस चेहरे को जिसे दिल से हटाना चाहता हूँ ,
बार – बार क्यूँ सामने आ जाती है ।
वीरान सा हूँ ,
धोके की इस दुनिया में ,
अपनापन खोने लगा हूँ ।
यादों के साए में ,
खुशियों का है नज़ारा ।
हकीकत की परछाई में ,
अश्कों का है ज़मावरा ।
धुँध में फैली है एक ऐसी चिंगारी ,
जो कभी जल नहीं पाती है ।
पता नहीं बार – बार मुझे उसकी याद क्यूँ आती है ?
– आशीष कुमार