बाज़ार |


धू – धू  कर जलती सपनों की दास्ताँ |
शहादत में मिली है ज़ख्मों का कारवां |
लाखों हैं यहाँ बनावटी  चेहरे |
हर वक़्त देते हैं बेवजह पहरे |

शब्दों का कोई मोल नहीं |
भरोसा किसी पर नहीं |
लोग यहाँ मिलते हैं हर रोज़ |
बना देते हैं हर बात का गठजोर |

इन्सान इन्सान का नहीं होता |
इसलिए तो हर क़दम पर वो है रोता |
ये दुनिया है एक ऐसा बाज़ार |
जहाँ सबकुछ होता  है तार – तार |

खून के आंसुओ को भी पीना परता है कभी |
दिल रोता है तो मनाना  भी परता है कभी |
कौन सुनता है यहाँ किसी की आवाज़ |
इसलिए तो कहते हैं : ” दफना दिया करो हर राज़ |”
क्यूंकि …
ये दुनिया है एक ” अनोखा बाज़ार …”

– आशीष कुमार