जज़्बात कभी हालात ने बदले,
तो कभी मुलाकात ने बदले।
जज़्बात कभी रात के अंधियारों ने बदले,
तो कभी जीवन के अंधकार ने बदले।
कभी आग की लपटों में जज़्बात जल गए,
तो कभी दिल की आग में धुआं बन उड़ गए।
शाम ढलते कभी दिल के कब्र में चले गए,
तो कभी भोर होते वापस दिल में बस गए।
जज्बात कभी कोहरा बन उड़ गए,
तो कभी अश्रुओं की बारिश में बह गए।
जज़्बात कभी हालात ने बदले,
तो कभी मुलाकात ने बदले।
दिलवालों की बस्ती में कभी दिल ही न मिले।
फिर इंसान का दिल भगवान या खुदा से कैसे मिले?
क्या थे और क्या से क्या हो गए।
कभी दूध और पानी के प्यासे थे,
अब खून के प्यासे हो गए।
इतने रंग बदले कि बेरंग हो गए,
जज़्बात अब कागज़ में ही गुम हो गए।
जज़्बात अब कागज़ में ही गुम हो गए।
–Ashish Kumar