आँखे देखें सब सत्य…


आँखे देखें सब सत्य , पर मन मैला हो जाये।
इस मलीन मन को अब , कौन कैसे जलाये ?


ज़िन्दगी के समर में , आग उगलता इंसान।
इस आग में आखिर जल रहा , सिर्फ और सिर्फ इंसान।
शून्य हुआ संसार , मानव के बाजार में।
मिट रही मानवता , मानव निर्मित संसार में।
थम गयी है ज़िन्दगी , आज के इस दौर में।
सांसे रूकती जा रही , इस प्रदूषित अंधकार में।
सत्य स्वीकार्य नहीं , इस दूषित समाज में।
सब खुद ही सत्य हैं , इस अनोखे दौर में।
सब कुछ पाया हमने , इस भौतिक दुनिया में।
खोया तो सिर्फ इंसानियत , इंसानो की दुनिया में।
हंसी , ख़ुशी और अपनापन , सब लिप्त हो रही।
संघर्ष के इस काल में , आँखें मूँद हो रही।


फिर भी हम हैं आज , खुद को कुछ बदलना होगा।
इस नयी चुनौती से , अब मिलकर निपटना होगा।
मलीन मन को अब , दूषित नहीं करना है।
जो गलती जिससे हुई सो हुई , अब उठना है और बढ़ना है।
इस मंज़र को बदलना है , अब भी वक़्त है।
अंतर्मन की आवाज़ से , साथ मिलकर लड़ना है।
ज़रूरी है इस सत्य को समझने की …
आँखें देखे सब सत्य , पर मन मैला हो जाये।
इस मलीन मन को अब , कौन किसे जलाये ?

-Ashish Kumar