जज़्बात


जज़्बात कभी हालात ने बदले,

तो कभी मुलाकात ने बदले।

जज़्बात कभी रात के अंधियारों ने बदले,

तो कभी जीवन के अंधकार ने बदले।

कभी आग की लपटों में जज़्बात जल गए,

तो कभी दिल की आग में धुआं बन उड़ गए।

शाम ढलते कभी दिल के कब्र में चले गए,

तो कभी भोर होते वापस दिल में बस गए।

जज्बात कभी कोहरा बन उड़ गए,

तो कभी अश्रुओं की बारिश में बह गए।

जज़्बात कभी हालात ने बदले,

तो कभी मुलाकात ने बदले।

दिलवालों की बस्ती में कभी दिल ही न मिले।

फिर इंसान का दिल भगवान या खुदा से कैसे मिले?

क्या थे और क्या से क्या हो गए।

कभी दूध और पानी के प्यासे थे,

अब खून के प्यासे हो गए।

इतने रंग बदले कि बेरंग हो गए,

जज़्बात अब कागज़ में ही गुम हो गए।

जज़्बात अब कागज़ में ही गुम हो गए।

Ashish Kumar

47 thoughts on “जज़्बात

  1. Lokesh Sastya

    बहुत खुब कहा आशीष भाई। मुझमें भी जज़्बात ज्यादा है और समझ उतनी नहीं।

    आपको पढ़कर अच्छा लगता है। 🙂

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    1. Hahaha… जज़्बात तो सब में होती है लोकेश बस उसका प्रयोग किस दिशा में करना है ये जरूरी है। बहुत अच्छा लगा की अपको ये कविता पसंद आई। बहुत बहुत धन्यवाद आपका। 🤗🙏🤗

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  2. Lokesh Sastya

    मैं कोशिश कर रहा हुँ कि अपने ब्लॉग पर कुछ काम की बाते share कर सकुं। सब चीजें व्यवस्थित हो ।

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  3. बहुत सुन्दर वर्णन किया आपने आशीष कुमार जी।
    हमारे मेरे जज्बात संवेदनशील होते हैं।
    उन्हें हर कीमत पर सजो के रखे।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका पढ़ने और पसंद करने के लिए। काफी प्रसन्नता हुई जानकर की अपको मेरी लेखनी अच्छी लगी।।। 🤗🙏🤗

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  4. बहुत खूब ये कविता 🌹🙏 जज़्बात को काबू मे रखना ही हमेरी ज़िन्दगी की सफलता है 👍🏼🌹 बधाइयाँ🌹🙏

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  5. जज़्बात की इतनी सुंदर अभिव्यक्ति अच्छी लगी। ये व्यंगात्मक पंक्तियाँ सटीक हैं –

    दिलवालों की बस्ती में कभी दिल ही न मिले।
    फिर इंसान का दिल भगवान या खुदा से कैसे मिले?

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  6. बहुत खूब लिखा, जज़्बात कुछ इसी तरह बदलते रहते है।
    सभी के जज़्बात को एक ही कविता में दिखा दिया आपने।
    🙂👍

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