बात


बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।

बस यही बात है, जो मुसीबत की जड़ है।

इसी बात में, गौण हो रहे जज़्बात।

मालूम नहीं कैसे, बिगड़ जाते हालात।

बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।

हमारी सब सुने, पर हम किसी की नहीं।

अहंकार में लिप्त हुई, इंसान की सोच।

अपनापन हमदर्दी छोड़, हो रहे सब मदहोश।

बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।

कहते हैं जिसे इंसान, पर वो इंसान नहीं।

मानव निर्मित हथियार और मिसाइल ने,

सिर्फ मानव को ही मारा।

कितने घर किए बर्बाद, और कितनों को उजाड़ा।

इस कदर बार बार, मानवता को ही मारा।

हमने मिसाइल तो बनाया, पर “मिसाल” कब बनेंगे?

इस अंधे दौड़ से, बाहर कब निकलेंगे?

बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।

मैं ही सिर्फ सत्य हूं, और बाकी कुछ नहीं।

असल सत्य जो है वो “मैं” नहीं,

और “मैं” जो है वो सत्य नहीं।

यही बात है जो समझनी है।

बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।

बात सिर्फ इतनी है, कि बात कुछ भी नहीं।

Ashish Kumar

67 thoughts on “बात

  1. सुप्रभात 🙏 आप की बात की कविता सही है, मुझे पसंद है ।इस दुनियाँ में साकारात्मक सोचने लोग कम और नाकारात्मक
    सोचने लोग ज़्यादा है। इसलिए सिर्फ़ हमें चुनना है कि किस से बात करना है और किस से नहीं ।बहुत सुन्दर कविता 👌बधाई 🌷🙏

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  2. अच्छा व्यंग किया है आपने। ये पंक्तियाँ और प्रश्न प्रभावशाली है –
    हमने मिसाइल तो बनाया, पर “मिसाल” कब बनेंगे?

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  3. Pingback: बात – Love & Love Alone

  4. Lokesh Sastya

    हमने मिसाइल तो बनाया, पर “मिसाल” कब बनेंगे?

    सोचने वाली बात है।

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