ये किसने रचाया है षड़यंत्र ऐसा।
क्यों न कहें इसे “गणतंत्र” से धोखा।
इरादें हैं इनके, हिंसा और अराजक होना।
“तंत्र” के नाम पर “लोकतंत्र” तोड़ना।
गण को शर्मसार करके “जन – गण ” तोड़ना।
लाठी , तलवार , भाले और फरसे से
टैगोर की ” जन – गण – मन ” छेदना।
ये कैसी है त्रासदी ?
इसी ख़ाक में मिली है अनगिनत हस्ती।
पावन है ये, वो भारत की धरती।
मिली जहाँ ख्वाजा , राम और रहीम की भक्ति।
गुंजी यहीं थी, श्री कृष्ण की बंसी।
ये वो ही है ज़मीन।
नानक के “इक ओंकार ” की ,
गोविन्द सिंह के शौर्य और बलिदान की ,
ये वो ही है ज़मीन।
स्वामी विवेकानंद के धार्मिक ज्ञान की।
महर्षि दयानन्द के “सत्यार्थ प्रकाश ” की।
दुनिया ने माना जिसे ” गौतम की धरती”।
ये वही है सरज़मीं।
अहिंसा का पुजारी , कहते हैं हम गाँधी।
झुकाया था जिसने , अंग्रेज़ों की आँधी।
एक भारत कहते हैं जिसे हम, वो है प्यारा।
बनाया था जिसने , वो “सरदार ” हमारा।
“जय जवान जय किसान ” कहने वाला।
वो देश का अपना, “लाल” हमारा।
सिर्फ यादें हैं उनकी यहीं।
“ आज़ाद ” और “भगत ” ने धोखा नहीं किया।
मौत गले लगाया पर सौदा नहीं किया।
ये वो ही तो है धरती।
एक शोला जलाया था , आज़ादी का मतवाला।
“आज़ाद हिन्द फौज” था “सुभाष” ने बनाया।
पावन है ये धरती।
सुखदेव, राजगुरु, बिस्मिल और अशफ़ाक़।
न जाने ऐसे कितनों को हमने गंवाया।
इसी ख़ाक में सब मिले।
कहते हैं जिसे “हिन्द “, वो हिंदुस्तान यही है।
“नेहरू ” की बाबस्ता, गुलिस्तां यही है।
ये वो ही तो है ज़मीन।
ये वीरों की है सरज़मीं।
पावन है ये वो भारत की धरती।
जन्मी जहाँ थी , अहिंसा की शक्ति।
फिर कैसी आज शामत है आयी।
भारत ने अपनी इज़्ज़त गंवाई।
है कौन वो, जिसने चीड़ा “भारत के हृदय ” को,
कि “लाल ” कर दिया जिसने, “लाल किले ” की प्राचीर को।
जवानों के रक्त से, खूनी ये दहशत।
हुड़दंग मचाया था जिसने , किसकी है वेह्शत ?
इनके इरादे तो अच्छे नहीं …
कि मारा है इन्होने तीर,
भारत के कलेजे पर।
दाग लगाया है , हिन्द की “तस्वीरों” पर।
इनकी माफ़ी तो अब, बनती नहीं …
कि “तिरंगे ” को गिराया है आज यहां जिसने ।
जिसकी रक्षा में हो गए “शहीद ” जवान कितने।
इन्हें तो ये मालूम ही नहीं।
लहराया है “फ़र्ज़ी ध्वज” आज जिसने यहाँ पर।
गिरना पड़ा जब “जवानों ” को, “खाई ” में जा कर।
ऐसा मंज़र न देखा कभी …
कौन है वो पागल, कौन हैं वो गुंडे ?
चलाते हैं बेशर्मी, “तिरंगे ” पे डंडे।
इन्हें शर्म तो आती नहीं …
और राजनीती करते हैं, ये नेता ये दरिंदे।
माँ- भारती को बेच के, चलाते हैं धंधे।
इन्हें शर्म तो आती नहीं …
बेशर्मी की हद है यही …
गणतंत्र के अवसर पे, ये “षड़यंत्र ” कैसा ?
आंदोलन के नाम पे ये “हुड़दंग ” कैसा ?
ये मंज़र तो अच्छी नहीं …
गलती नहीं, “गुनाह ” किया जिसने।
अपने वतन को, “दागी ” किया किसने ?
छिपे हैं यहीं पर यहीं |
भड़काया है जिसने भी, हिन्द के अमन को।
गिराया है जिसने भी, भारत के चमन को।
छिप कर बैठे हैं, यहीं पर यहीं …
कि सवाल है एक आज , भारत के मन में ।
पनाह दे दें उन्हें अब , क्यों न “कफ़न ” में ???
ये मंज़र अब बर्दाश्त नहीं …
गुनहगारों को अब माफ़ी न करना।
गद्दारे वतन को अब न छोड़ना।
क्यूँकि …
बहुत हुआ, अब “बस” भी होना चाहिए।
गणतंत्र के अवसर पर, “षड़यंत्र ” नहीं होना चाहिए।
– Ashish Kumar
Reblogged this on Love and Love Alone.
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Thanks a lot for the reblog… 🙂
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wow! Awesome
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Thank you so much.. Glad you liked it… 🙂
Welcome to my world of writing… Keep visiting… 🙂
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Very apt 👏👏👏
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Thank you so much for reading and liking it… 🙂
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Hey just a little suggestion. Don’t use such colour scheme it makes it difficult to read properly.
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Hi Muskan… Thanks a lot for figuring it out and providing the suggestion and I updated the poem now with one font colour… Please check and keep sharing your feedback… Once again, thanks a lot… 🙂
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Hey. I saw u changed the blue font color to black. But are u using any background colour. Grey it seems. Because i am using dark mode in mobile and it’s still much difficult to read. In light mode it could be possible maybe. But see if you want to go with same.
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Hi… I checked my WP Settings and I am not using any background colour… Also, I checked in my mobile in dark mode, it’s visible and readable there as well…
Not sure why it’s not properly readable in your mobile… 😦 Pls check it once in light mode or in your laptop/computer…
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Very nice. Sounds like I am reading a revolutionary poetry from pre- Independence India.
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Hahaha… thanks a lot… 🙂 It just happened… thanks for reading and liking it… 🙂
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Wonderful poem…I thought there will be controversial comments but luckily everything is peaceful here 😀
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Thanks a lot for reading and liking the poem… 🙏
Welcome to my world of writing… Keep visiting… 🤗🙏
I won’t allow any derogatory or controversial statements… 😊
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O my God !
You have sum up the tragedy by your actual ink . **”Gantantra me shadyantra”.
Behind the face of “democracy” some people turn it in “mobocracy”.
Strong pen ! Flow it ahead Mr. Ashish.
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Thank you so much Kishan for stopping by and reading the poem… Glad you fond it worth… 🙂
Welcome to my world of writing… Keep visiting… 🙂
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Offcourse Ashish 🥰.
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Thank you so much… 🙂
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बहुत बहुत शुक्रिया। आपकी रचना बेहद सच्चाई को हमें बेहतर तरीके से दर्शाया है। ✌️👍💐
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Bahut bahut dhanyawad apka meri rachna padhne aur sarahne ke liye… Khushi hui ki apko achi lagi… 🙂
welcome to my world of writing… keep visiting… 🙂
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आप न केवल अपनी बात सहज रूप से बताते है पर आवाज़ उठाना की जानते है । मैं सोचता हुँ इस विषय पर और खयाल आता है,“ अगर आवाज दबाई ही न जाई, उसे स्वीकारने की शक्ति सत्ता पक्ष के पास हो तो आवाज न उठानी पडेगी । ”
आपकी कविता ने मुझे भावविभोर कर दिया है, न यहाँ क्रोध है न घृणा है न शक्ति के नशे में चूर होने का भाव है | यहाँ तो एक समझ है, अपने होने का आभास है, अपने सपनों के भारत को बनाने की उत्सुकता है |
बीते समय में माहौल बदला है । चीजे पहले की तुलना में जटिल हुई है । हम आशा करते है एक नवीन आधुनिक युवा भारत निर्माण की ।
मुझे डर इसी बात का लगता है आशीष भाई कि कोई एक व्यक्ति विशेष के विचारों और अभिव्यक्ति को बिना किसी दूसरे व्यक्ति, समूह या संस्था आदि से जोड़कर देखता है । आभार |
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बहुत बहुत धन्यवाद लोकेश आपके विष्लेषण के लिए। अच्छा लगा की अपको ये कविता पसन्द आयी।
समय के साथ साथ बहुत कुछ बदलता है। लोगों की सोच भी बदलती है, रहने का तौर तरीका बदलता है और देखने का नजरिया भी। कुछ लोग अपनी विचारों को थोपते भी है और कुछ ऐसे हैं जिन्हें अपने ही विचार सिर्फ सत्य लगते हैं।
आभार अपका की आपने अपना समय देकर मेरी रचना को पढ़ा और अपनी प्रतिक्रिया दी। 👍🤗🙏
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I will try to read more…
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Thanks a lot 👍
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A bit narrow prospect in this poem.
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Thanks for reading and sharing your views
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बहुत अच्छा लिखा
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Bahut bahut dhanyawad padhne aur pasand karne ke liye… 🙂
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