अग्निवर्षा…


आज की सुबह कुछ अजीब थी।
जैसे सूरज मुरझाया हुआ।
नींद भरी आँखों से मैंने देखा।
सूरज की आँखें भी नम थी।
वो कुछ कहना चाहता था ,
शायद अपनी संवेदना बताना चाहता था।
जब तक मैं उन से कुछ पूछता।
अचानक बादलों का आगमन हुआ।
और सूरज बादलों में अद्रिश्य हुआ।
दिन भर काली घटा छायी रही।
बिन मौसम बरसात होती रही।
शाम होते होते सूरज की लालिमा फिर आयी।
पर उसकी चमक फिकी थी।
सूरज की आँखें भी नम थी।
तब मालूम हुआ मुझे की दिन भर बारिश क्यों हुई।
ये बारिश नहीं थी
बल्कि सूरज की आंसुओं की धरा थी …
जो धरती पर बह रही थी।

यकीन नहीं हुआ की सूरज भी रो सकता है।
अपनी संवेदना बयां कर सकता है i.
इसका कारण क्या हो सकता है ।
शायद …
मानव युक्त इस धरती पर।
मानवता शून्य हो रही है।
पशुओं में मानवता दिखाई दे रही है।
मानव ही मानव को खोखला बना रहा है।
धैर्य , समर्पण और विश्वास ख़त्म हो रही है।
अन्धविश्वास ने विश्वास को परास्त कर दिया है।
राखत से रंगीत ये दुनिया अब बन रही है।
बलात्कार और खून अब सामान्य हो गयी है।
हासिल तो बहुत किया इंसान ने।
पर क्या वो “इंसानियत ” हासिल कर पाया ?
सोचने की बात है अब …
क्या इस तरह इस संसार में इंसान रहेंगे ?
तो सूरज सच में रोयेगा और जब वो रोयेगा …
तो आंसू ज़रूर गिरेंगे …
और बारिश भी ज़रूर होगी .
पर थोड़ी अलग ,
जो होगी …
सूरज की “अग्निवर्षा।

 – Ashish Kumar

28 thoughts on “अग्निवर्षा…

  1. बेहतरीन रचना आपकी। 👌👌

    शायद पंक्तियाँ ये होना चाहिए–

    मानव युक्त इस धरती पर।
    मानवता शून्य हो रही है।

    Liked by 1 person

Leave a comment