थोड़ा तुम बताओ , थोड़ा मैं बताऊँ |


उस कली की बात मैं क्या बताऊँ |
उस मुस्कान की खूबसूरती क्या बताऊँ |
वो जो करती है अपनी ज़ुल्फ़ों से नखरे |
उस हाज़िर जवाब इंसान की दास्ताँ क्या बताऊँ |
जो मिली नसीब से , उस संजीवनी की व्याख्या क्या बताऊँ |
दिल में बस गयी और साँसों में समां गयी |
उस नाचीज़ की हाल -ऐ -दास्ताँ मैं क्या बताऊँ |ख़याल आता है मुझे अब तेरा हर वक़्त |
जिंगदी थम सी गयी है बेवक़्त |
वो क्या जादू है तुझमे जिसमे मैं फिसल गया |
तुम्हारे ख्यालों में मैं बस गया |
तेरे होटों की मुस्कराहट कहती है कुछ और |
ज़ुबान पर बोल बोलती है तू कुछ और |
दिल में तेरे कुछ चल रहा है |
क्या वो मेरे लिए धड़क रहा है ?
रख कर दिल पर हाथ एक बार सोचो |
अपने आप से मेरे बारे में पूछो |
जो तेरे दिल में बस्ता है…
जो मेरे दिल में बस्ती है…
थोड़ा तुम बताओ , थोड़ा मैं बताऊँ |
थोड़ा तुम बताओ , थोड़ा मैं बताऊँ |
अब कली से तुम फूल बन जाओ …
अब कली से तुम फूल बन जाओ …

Ashish Kumar

36 thoughts on “थोड़ा तुम बताओ , थोड़ा मैं बताऊँ |

  1. Pingback: थोड़ा तुम बताओ , थोड़ा मैं बताऊँ | – Vijayagiri views

  2. बहुत बढ़िया लिखा आपने । मैंने भी लिखना शुरू किया है ।कृपया मेरा पेज विजिट कर अपने सुझाव दें और फॉलो करें 🙏🙏

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